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क्यों मनाया जाता है क्रिसमस? ईसाईयों में क्रिसमस का महत्व 11-Dec-2024

क्यों मनाया जाता है क्रिसमस?

क्रिसमस के संबंध में अभी तक हमने यह जाना है कि यह पर्व ईसा मसीह से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि क्रिसमस के दिन धरती पर स्वर्गदूत अर्थात फरिश्ते उतरे और लोगों को प्रभु यीशु मसीह के उद्धारकर्ता होने का ऐलान किया।

क्रिसमस सम्बंधित विशेष तथ्यों को ल्यूक और मैथ्यू के कैनोनिकल गॉस्पेल से प्राप्त किया जा सकता है जो ईसाई धर्म के लोगों के बीच महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अनुसार, ईसा मसीह का जन्म माँ मरियम से बेथलहम में हुआ था। एक जनगणना के लिए यूसुफ और मरियम नासरत से बेथलेहम आते हैं जहाँ यीशु का जन्म हुआ और वहां उन्हें एक चरनी या नांद में रखा गया था।

क्रिसमस के इतिहास के विषय में इतिहासकारों में विरोधाभास देखने को मिलता है। इतिहासकारों के अनुसार, इस पर्व को यीशु के जन्म के पहले से ही मनाया जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि रोमन त्यौहार सैंचुनेलिया का ही नया रूप है क्रिसमस। कई मान्यताओं के अनुसार, सैंचुनेलिया को रोमन देवता माना गया है। कुछ समय उपरांत, जब ईसाई धर्म की स्थापना हुई तो उसके बाद यीशु को अपना ईश्वर मानकर लोगों द्वारा सैंचुनेलिया पर्व को क्रिसमस डे के रूप में मनाया जाने लगा।

क्रिसमस डे 25 दिसंबर को मनाने का कारण

ऐसा माना गया है कि क्रिसमस को सन 98 से लोग द्वारा निरंतर मनाया जा रहा हैं। इस त्यौहार को मनाने की आधिकारिक घोषणा रोमन बिशप ने सन 137 में की थी। उस समय क्रिसमस को मनाने का कोई दिन निश्चित नहीं था। रोमन पादरी यूलियस ने सन 350 में 25 दिसंबर को क्रिसमस डे के रूप में मनाने की घोषणा कर दी थी।

क्रिसमस से संबंधित अन्य मान्यता के अनुसार, प्रारंभ में 25 दिसंबर को स्वयं धर्माधिकारी क्रिसमस के रूप में मनाने के लिए तैयार नहीं थे। वास्तव में, यह रोमन जाति का एक पर्व था, जिसके अंतर्गत सूर्य देवता का पूजन किया जाता था। ऐसा माना जाता था कि इस दिन भगवान सूर्य का जन्म हुआ था। जिस समय ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ तो ऐसा कहा गया कि यीशु ही सूर्य देवता के अवतार हैं, तब से उनकी पूजा होने लगी लेकिन इसे मान्यता नहीं मिली।

ईसाईयों में क्रिसमस का महत्व

ईसाई धर्म के लोगों के लिए विशेष दिन होता है क्रिसमस। यह दिन इसाई धर्म के लोग अपने ईष्ट देवता यीशु के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं, इसलिए यह दिन बहुत ही पावन और पवित्र है। ईसाई धर्म के प्रवर्तक हैं यीशु। इसाई धर्म का पवित्र ग्रंथ बाईबल हैं जिसमे उनके उपदेशों और उनकी जीवनी का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। क्रिसमस से 15 दिन पूर्व ही क्रिश्चियन समाज के लोग इसकी तैयारियों में लग जाते हैं।

क्रिसमस का महत्व 

क्रिसमस को अब लगभग दुनियाभर में मनाया जाता है इसलिए वर्तमानयुग में इस त्यौहार को धार्मिक न कहकर सामाजिक कहना अधिक उचित होगा। क्रिसमस के पर्व को "बड़ा दिन" भी कहा जाता हैं। इस त्यौहार की तैयारियाँ भी उत्साह से की जाती हैं। यह ईसाई धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार है। क्रिश्चियन अर्थात ईसाई धर्म से सम्बंधित पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि क्रिसमस के दिन ही यीशु का जन्म हुआ था जो ईसा मसीह के नाम से भी जाने जाते है। ईसाई धर्म के ईश्वर हैं ईसा मसीह। 

यही कारण है कि क्रिसमस डे के अवसर पर चर्च यानि गिरजाघरों में प्रभु यीशु की जन्म कथा की झांकियाँ तैयार की जाती हैं, साथ ही इस दिन गिरजाघरों में प्रार्थनाएं की जाती है। ईसाई धर्म के अनुयायी क्रिसमस पर चर्च में एकत्रित होकर ईसा मसीह की उपासना करते हैं। सभी लोग एक-दूसरे को मिलकर क्रिसमस की बधाईयाँ देते हैं।

क्रिसमस का संदेश

क्रिसमस का त्यौहार समाज में शांति और सदभावना का सन्देश देता हैं। बाइबल के अनुसार, यीशु को शांति का राजकुमार कहा गया है। वे सदैव अभिवादन के रूप में कहते थे- शांति तुम्हारे साथ हो. शांति के बिना किसी भी धर्म का अस्तित्व संभव नहीं है। घृणा, संघर्ष, हिंसा एवं युद्ध आदि का धर्म के अंतर्गत कोई स्थान नहीं है।

 



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